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गणेश जी का विसर्जन क्यों किया जाता है? क्या है इसका इतिहास?

वर्ष 2023 में दिनांक 19 सितम्बर को भगवन गणेश के आगमन का पर्व गणेश चतुर्थी देश विदेश में भक्तो द्वारा बड़े ही धाम धूम से मनाया गया

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इस दिन श्रद्धालुओंने बाप्पा का बड़े भक्तिभाव पूर्वक स्वागत किया। हर साल इस उत्सव को ज़्यादा से ज़्यादा 10 दिनों तक मनाया जाता है पर लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन या 10 दिनों के लिए घर या गली महोल्ले में विधि विधान से गणेश जी की स्तहपा करते है और अनंत चतुर्थी के दिन विसर्जन करते है। इस साल गणेश विसर्जन 28 सितम्बर को होगा। सनातन हिन्दू धर्म में भगवान् गणेश को प्रथम पूजनीय देवता के रूप में माना जाता है तो फिर उनका विसर्जन क्यों करते है? क्या है उसके पीछे का इतिहास? आइये जानते है गणेश चतुर्थी और अनंत चौदश के पौराणिक कथाओ के बारे में!

 

गणेश चतुर्थी का पर्व क्यों मनाया जाता है?

धार्मिक शास्त्रों की में बताए गए इतिहास के अनुसार देवी पार्वती जी ने भगवान शिव जी की अनुपस्थिति में स्नान करते समय अपनी रक्षा के किये चंदन के लेप से भगवान् गणेश जी की रचना की थी। भगवान शिव के लौटने पर गणेश जी वह पहरा दे रहे थे हुए उन्होंने शिव जी को स्नान कक्ष में प्रवेश नहीं करने दिया। इससे क्रोधित होके शिव जी ने गणेश जी का सिर काट दिया। यह सब देख कर देवी पारवती अति क्रोधित हो गई और देवी काली का रूप धारण किया। इससे भगवान् शिव ने सुझाव देते हुए एक बच्चे का सिर खोजने की बात इस शर्त पर रखी की बच्चे की माँ का मुँह दूसरी तरफ मुड़ा हुआ हो। शिव जी ने त्रिशूल को आगे फैका और जो पहला सिर मिला वह हाथी के बच्चे का था। भगवान् शिव ने इस सिर को गणेश जी के साथ जोड़ा और ऐसे उनका पुनर्जन्म हुआ। यह देख कर पार्वती जी अपने मूल रूप में गई और तब से आज तक हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।

 

गणेश विसर्जन की सुप्रसिद्ध कहानिया:

महाभारत और महर्षि वेदव्यास जी

गणेश जी की मूर्ति 10 दिन बाद पानी में विसर्जित करने के पीछे की मुख्य कहानी महाकाव्य महाभारत और महर्षि वेदव्यास जी से जुडी हुई है। महाभारत के रचियता महर्षि वेदव्यास जी ने भगवन गणेश से इस महाकाव्य को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। भगवन गणेश ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए महाभारत लेखन का कार्य गणेश चतुर्थी के दिन शुरू किया था।

भगवान् गणेश ने वेदव्यास जी की प्रार्थना को स्वीकार तो कर लिया था परन्तु उन्होंने एक शर्त भी राखी थी की 'मै जब लिखना प्रारंभ करूँगा तो फिर रुकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बांध कर दूंगा।' उस समय वेदव्यासजी ने कहा की 'भगवान आप देवताओ में अग्रणी है, बुद्धि और विद्या के दाता है और में एक साधारण ऋषि। यदि किसी श्लोक में मुझसे कोई त्रुटि हो जाए तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करे।' इस पर गणेश जी ने सहमति देते प्रकट की और फिर दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ। इस कारण  गणेश जी को थकान तो हो रही थी पर उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः उनके शरीर का तापमान बढ़ ना जाए उस लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर मिटटी का लेप लगा दिया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। इसके बाद महाभारत का लेखन कार्य शुरू हुआ और इसे पूरा होने में तक़रीबन 10 दिन लग गए।

जिस दिन गणेश जी ने महाभारत का लेखन कार्य पूरा किया था, उस दिन अनंत चतुर्थी थी। परन्तु लगातार 10 दिनों तक बिना रुके लिखने के कारण भगवान् गणेश का शरीर जड़तव्  हो चूका था। ऊपर से शरीर पर लगे मिटटी के लेप के कारण शरीर में अकड़न गई और इसी कारण उनका नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। महर्षि ने देखा की, गणेश जी का शारीरिक तापमान फिर भी बढ़ा हुआ है और लेप की मिटटी सुखकर झड़ रही है, तो उन्होंने गणेश जी को पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास जी ने गणेश जी को खाने के लिए कई प्रकार के व्यंजन दिए थे। इसी कारण गणपति जी की स्थापना 10 दिनों के लिए होती है और अनंत चतुर्थी के दिन गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

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गणेश विसर्जन के पीछे एक और कथा यह है की त्यौहार के आखरी दिन भगवान् गणेश अपने माता-पिता भगवान् शिव और देवी पारवती जी के साथ कैलाश पर्वत लौटते है। गणेश चतुर्थी का महोत्सव जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र के महत्त्व को दर्शाता है।गणेश जी, जिन्हे शुभ शुरुआत के देवता भी माना जाता है, वही बाधाओ के निवारण के रूप में भी पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है की गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन के लिए  बाहर ले जाया जाता है तो वह अपने साथ भर की विभिन्न समस्या और बाधाओं को भी दूर कर देते है और उनके विसर्जन के साथ साथ बाधाए भी नाश हो जाती है। प्रति वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु गणेश चतुर्थी के त्यौहार की प्रतीक्षा करते है और हमेश की तरह आशा करते है की विघ्नहर्ता गणेश उनके विघ्न दूर करेंगे और आशीर्वाद बरसाएंगे।

 

भगवान् गणेश जी के विसर्जन की परंपरा:

गणेश चतुर्थी के त्यौहार के अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी के दिन इस 10 दिवसीय उत्सव का समापन होता है। इस दिन भक्त अपने प्यारे भगवान् की मूर्ति को लेकर यात्रा निकालते है और उनका विसर्जन करते है।

 

इस साल 2023 को गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त

प्रातः 06:10 AM से 07:43 AM

प्रातः 10:43 AM से 03:12  PM

संध्या: 04:42 PM से 06:12 PM

रात्रि: 12:13 AM से 01:43 AM

 

डिस्क्लेमर: ऊपर दी गई सभी जानकारिया सामाजिक और धार्मिक मान्यता और आस्थाओ पर आधारित है। NewsFactorIndia इसकी पुष्टि नहीं करता। इसकी पुष्टि के लिए विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले।

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